सुप्त कला

 देखो साहेब मैं ना कोई साहित्यकार हूँ ,न ही कोई कलाकार हूँ।

लिख क्यों रहा इससे भी अज्ञात हूँ।।


पर प्रारम्भ तो करना होगा ,वर्षों जो हो गया ।

आज की सदी में ,वह आनन्द कहाँ खो गया ।।


बात उस सुप्त कला की होने वाली है ,जो आज के समय में सुप्त है।

हृदय की गहराइयों में प्रवेश करने पर भी लुप्त है।।


बचपन का समय भी बड़ा विचित्र होता है।



उस समय कुछ ऐसी परिस्थितियाँ होतीं थीं।

पापा के 2 रु भी बड़ी उपलब्धियों होती थीं।।


अब प्रारम्भ करते हैं, बात उस मध्यान काल की है जब घर के सभी बैठकर TV देख रहे थे,खुसी के तावे पर आनन्द की रोटी सेंक रहे थे ।


TV में कुछ यों दृश्य आ रहा था ,

एक टेबल था जिसमें एक एल्बम रखा हुआ था ,वह एल्बम पुस्तक के मुख्य पृष्ठ के समान था ,जिसे खोलने पर आर पार  दो चित्र के दृश्य मिलते थे ।


अब TV का वह दृश्य आया और निकल गया ,पर मेरे दिमाग में कुछ कार्य छोंड़ गया ।


सायं काल को मेरे मन में यह विचार आया ,


मुझे तो ऐसा एल्बम बनाना है 

,दोनों भाइयों का फोटो जिसमें लगाना हैं।


पर बालक था क्या कर सकता था ,

अपने विचारों को दबाकर रह सकता था।


उसी समय मेरी दृष्टि मेरे मां के चुड़ी डब्बे पर पड़ी ,उसमें चूड़ियों को पृथक करने हेतु चौकोर आकर के कुछ पुठे थे।


पुठे को देखकर एक चीज़ तो समझ मे  आ गया था।

एल्बम तो बना के रहूंगा,ऐसा मस्तिष्क में बसा गया था।।


एक दिन माँ नहीं थीं तो पूठा चुरा लिया ,बाद में जब माँ पूछीं की "चुड़ी डब्बा अपने स्थान पर क्यों नहीं" तो उसे मैं  "सुरछित रखा हूँ" बता दिया ।


पुठे का व्यवस्था तो हो गया ,पर अन्य वस्तु की आवश्यक्ता थी ।


इन सब वस्तुओं की बहुत ज्यादा लागत थी ,

पापा के 2 रु ही उस समय ताकत थी ।


पापा के 2 रु इतना हो गया था कि मैं एक काले रंग का टेप खरीदकर ले आया ,जो वस्तु था उतने में ही काम चलाया ,एल्बम बनाना प्रारंभ कर दिया।कई दिन निकल चुके थे पर उसे में काले टेप से ही जोड़ पाया था ।


पापा एक दिन शहर की ओर जा रहे थे ।में पापा से जिद्द करने लगा कि मुझे चमकीली टेप चाहिए,स्कूल में मास्टर जी कापी सजाने को बोलें हैं।


बहुत विवश करने पर पापा जी चमकीली टेप दिला  दिए ।

अब मैं एल्बम बनाने लगा ,उसमें सुंदरता लाने हेतु विभिन्न आकृति में सजाने लगा ।

एल्बम लगभग तैयार ही हो गया था और एक दिन ,में अपने पड़ोस के भैया के घर खेलने गया था ।वो भैया भी जुगाड़ू थे ,उनके पास भी इसी प्रकार के चमकीले टेप हुआ करते थे । 

उन्होंने मुझे कुछ और सुंदर चमकीले टेप प्रदान कि

ये ।मैं उन सभी टेप का उपयोग कर एल्बम सुंदर बनाने लगा ।


रोज की बड़ी मेहनत के बाद में एल्बम बना ही लिया ,इसके लिए मैंने अपना 1 -2 महीना खपा दिया ।


अब एल्बम तो तैयार हो गया था पर उसमें लगाने हेतु चित्र उपलब्ध न था ।


उस समय यूँ समय था ,फ़ोटो निकलवाने हेतु दूर शहर जाना पड़ता था ।इसे पापा को कहने हेतु साहस ना था ,इसे सब कोई व्यर्थ समझते थे ।


अब एल्बम तो बना लिया था ,उसमें फ़ोटो तो लगाना ही था ।


एक मित्र था जिसके पापा का फोटोकॉपी का दुकान था ,अब मैं पापा से 2 रु मंगा और अपना अंकसूची पकड़ के फोटोकॉपी करवाने निकल गया ।


आके फोटोकॉपी के फोटो को काट कर एल्बम में लगा दिया ।


एल्बम एक ओर से तो पूरा हुआ पर भैया का फोटो न था ,उनका अंकसूची कैसे मांग इतना साहस तो भी ना था।



एल्बम पूरा हो गया अब पढ़ाई लिखाई में लगन हुआ ।

इन सभी को छोंड़ कर ,विद्यालयीन जीवन में मगन हुआ।।



5 वर्ष बीत चुके थे ,भैया अब बड़े हो चले थे ,भैया के एडमिशन के वक्त फ़ोटो की आवश्यक्ता थी ,उसी समय मुझहे एल्बम  हेतु भी फ़ोटो मिल गया और एल्बम पूर्ण रूप से पूरा हो गया।





अंदर में इतनी ऊर्जा थी ,सोंचने में आग लग जाता है।

बड़ी से बड़ी दुख घड़ियाँ भी,इसको विचार करने पर भाग जाता है ।।                

                                     ~श्रीकान्त चैनी 





यहां उपयोग किये गए शब्द 

भैया - शुभम भैया जी

पड़ोस वाले भैया -पुष्पेंद्र भैया जी

मित्र -गुलशन मित्र